Wednesday, 30 June 2010
ज्योतिष विद्या ही है सांचा
हिमाचल प्रदेश में शिमला जिले के गांव टील और सिरमौर जिले के गांव खड़कांह के ब्राह्मणों ने ज्योतिष की सांचा पद्धति को आज भी जीवित रखा हुआ है। आपके शरीर में कहां तिल या चोट का निशान है, इस विद्या से पता सकता है। मान्यता है कि भूत, वर्तमान और भविष्य का भी इस विद्या से पता चल जाता है। टील के 87 वर्षीय मेहरचंद भंडारी और खड़कांह के 88 वर्षीय साधूराम ने इस अभी भी संजोकर रखा है। खड़कांह में कई ब्राह्मण जाति के लोग इस विद्या का इस्तेमाल करते हैं। टील में अब नए लड़के भी इस काम को बखूबी करने लगे हैं।
यह ब्राह्मण गढ़वाल से यहां आकर बसे। मूलत: सांचा पद्धति उत्तराखंड की ही विद्या मानी जाती है। इसके लिए जो पौराणिक ग्रंथ उपलब्ध थे, उनका अनुवाद लोगों ने अपनी भाषा में कर लिया है। पुस्तक में साफ है कि इस विद्याका इस्तेमाल कैसे किया जाता है।
वास्तव में सांचा विद्या पासों का ही खेल है। पासे में चारों और अंक होते हैं। इस पासे को तीन बार फैंक कर प्रश्रकर्ताका उत्तर दिया जाता है। तीन बार पासे फैंक कर जो कुल अंकों का योग बनता है, उससे प्रश्रकर्ता को समस्या का समाधान बताया जाता है। जो तीन बार पासा फैंकने पर जो अलग- अलग अंक आते हैं, उनके हिसाब से प्रश्रकर्ताको अपने प्रश्रों का उत्तर मिलता है। मान्यता है कि इस पद्धति से अलग- अलग देवता प्रश्रों के उत्तर देते हैं। टील गांव के 87 वर्षीय मेहरचंद भंडारी का कहना है कि पासा मान सरोवर में पाए जाने वाले पक्षी शाठा कांडा की हड्डी से बनता है। यह पक्षी कभी जमीन पर नहीं बैठता। इस पासे को करामात माना जाता है। असली विद्या इस पक्षी की हड्डी में छिपी होती है। जो व्यक्ति इस विद्या को ग्रहण करता है, उसे शुद्ध करने के लिए इस पासे को पानी में डालकर फिर वह पानी पिलाया जाता है। बड़े- बुजुर्गों के पास तो इस तरह के पासे अभी भी मौजूद हैं, लेकिन जिनके पास यह पासे नहीं हैं , वे दूसरे पासों का प्रयोग भी करते हैं। जैसे तुलसी की टहनी का प्रयोग पासे बनाने के लिए किया जाता है। गंगा के पत्थरों से भी कुछ लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। इस विद्या का प्रयोग करने वाले कोई गलत काम नहीं कर सकते । मेहरचंद भंडारी का कहना है कि ऐसा करने से करने वाले के कुल नाश होने तक की बात ग्रंथों में आती है। सांचा पद्धति की मदद से कहा जाता हे कि चोर तक पकड़े जा सकते हैं। भविष्य और भूत के बारेमें भी पता चल सकता है। समाधान के लिए पूजा अर्चना तक बताई जाती है। पासा फैंकने वाले को पता चल जाताहै कि प्रश्र पूछने वाले के शरीर पर किसा तरह के चिन्ह हैं। अगर शरीर के चिन्ह ठीक नहीं पाए जाएं, तो दोबारापासे फैंके जाते हैं और पहले फैंके गए पासों को झूठ मान लिया जाता है। टील और खड़कांह के ब्राह्मण अंडा, मीटऔर शराब का भी सेवन नहीं करते। खड़कांह के अनंतराम शास्त्री, साधुराम भी इस काम को कर रहे हैं। टील में नई पीढ़ी के युवा भी इस कार्य के करने लगे हैं। गांवों की आपस में रिश्तेदारियां भी हैं।किंवदंती है कि सांचा विद्या का प्रादुर्भाव भगवान परशुराम ने किया था। यह विद्या कालांतर में नकुल और सहदेव को भगवान परशुराम ने प्रदान की। महाभारत काल में इस विद्या का काफी प्रचलन था लेकिन धीरे- धीरे हूणों, मंगोलों और अन्य जातियों के आक्रमणों और भारतीय संस्कृति के नाश पर उतारू आक्रमकों से बचाने के लिए अनेक भारतीय विद्याओं को कूट भाषाओं में रूपांतरित कर उन्हें बचाया गया। इस विद्या को दूसरे शब्दों में रमल शास्त्र भी कहा जाता है। इसके अनुसार इस शास्त्र की रचना रमल ने की थी। इस विद्या को जिस कूट लिपी में लिखा गया है, उसे पाबुचि कहा जाता है। वास्तव में सांचा विद्या खगोलीय विज्ञान यानी नक्षत्र, ग्रह, मंडल आदि से परे की विद्या है। जिसमें प्रश्रकर्ता को उनके प्रश्रों का उत्तर विभिन्न देवी देवता हैं। सूर्य, विष्ण, काली हनुमान आदि देवी- देवताओं के माध्यम से प्रश्रों के उत्तर दिए जाते हैं। उल्लेखनीय है कि इस शास्त्र में सभी समस्याओं के निदान होते हैं। मेहर चंद भंडारी कहते हैं कि उन्होंने आठ से अधिक लोगों को पूजा अनुष्ठान से इस विद्या के माध्यम से कैंसर मुक्त किया है। निसंतानों को संतान दिलवाई है। मेहर चंद भंडारी का कहना है कि इसके लिए साधना की आवश्यकता रहती है। हालांकि इस विद्या का अधिक प्रचार नहीं हो पाया है लेकिन आज भी यह विद्या प्रासंगिक है। मेहरचंद भंडारी ने बातया कि पिछली पीढ़ी तक इस विद्या के जानकार चिरी नाम से पंचांग बनाते थे। जिसमें तिथि, मुहुर्त से लेकर सभी शास्त्रोक्त सूचनाएं होती थीं।
- अश्वनी वर्मा
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3 comments:
A great article......
India a a great country....n v have a great culture...facts n finding on which v believe in our past, it's rare in present.......people say n judge on the basis maya calender that we will face destruction in 2012...but actually its indian ved's who can describe the same in different ways...science believe in facts... but i say its origin is india...so its the time for our highly educated scientist to go back & read the ved's again...we was far ahead & we will if n only if v combine both jyotish/ved's & science........
jai ho
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क्या ये किताब कहीं से प्राप्त हो सकती है।
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