विश्व में पक्षियों की 154 प्रजातियां खतरे में बताई जा रही हैं। हिमाचल में भी इन पर खतरा कम नहीं है। पक्षी प्रेमी प्रभात भट्टी तो प्रदेश में अपने द्वारा खींची पक्षियों की दुर्लभ प्रजातियों की प्रदर्शनियां लगाकर इन्हें बचाने बारे अलख जगा रहे हैं। कुछ साल पहले प्रदेश की पौंग झील में प्रवासी पक्षियों की वे कुछ प्रजातियां नहीं आईं जो अक्सर आती थीं। अगर इनमें से कुछ पक्षी आए तो वे जल्द ही वापस चले गए। कारण यही बताया गया कि उस साल प्रदेश में बर्फ कम पडऩे के कारण इन कुछ प्रजातियों ने पौंग आने से कन्नी काट ली। यही नहीं एक बार पौंग झील के वाच टावर के पास डेढ दर्जन से अधिक प्रवासी पक्षी मरे मिले थे। इनके पास से कुछ जहरीली दवाओं के खाली पैकेट मिले तो आशंका यह बनी कि इन्हें जहर देकर मारा गया है। बात यहीं तक ही सीमित नहीं रही उन्हीं दिनों वन विभाग के एक अधिकारी ने दो प्रवासी पक्षियों को मार डाला। उस अधिकारी की बंदूक जब्त करनी पड़ी और मामला थाने में प्राथमिकी दर्ज करने तक पहुंचा। पक्षी विहार के प्रतिबंधित क्षेत्र में शिकार करने वाला यह अधिकारी रंगे हाथों पकड़ा गया। प्रदेश में मासूम पक्षियों का शिकार हो रहा है। यह अधिक चिंता का विषय है। पौंग क्षेत्र में पक्षियों के गुपचुप शिकार का मामला वहां का दौरा करने के बाद नाहन के पूर्व विधायक अजय बहादुर ने अपने स्तर पर उठाया भी था।
इन खतरों के बावजूद वन्य प्राणी विभाग दावा कर रहा है कि दो साल पहले पौंग विहार में चार प्रवासी पक्षियों प्रजातियां नई देखने को मिली हैं। इनमें पाइड एवोसटे, ग्रेटर स्कार्प, जकाना और ग्रीन सेंक हैं। बड़ा झटका एक बार यह लगा कि एक बार हेडिड गीज की प्रजाति के पक्षी बहुत कम पौंग में पहुंचे थे। । बार हेडिड गीज वे पक्षी माने जाते हैं, जिनके सिर पर दो धारियां होती हैं। कारण यह माना गया कि प्रदेश में उस साल बर्फ और बारिश कम होने से वातावरण जल्द ही गर्म हो गया है। गनीमत यह है कि इस साल के शुरू में हुई गणना ने बार हेडिड गीज ने सारे रेकार्ड तोड़े हैं। यानी 2009-10 में बार हेडिड गीज प्रजाति के 40 हजार पक्षी पौंग पहुंचे। पर जलवायु परिवर्तन से यह आशंका बनी है कि ऐसे पक्षी पौंग आना कम हो सकते हैं। जैसा कि कुछ साल पहले हो चुका है। जलवायु परिवर्तन का खतरा भी शिकार के खतरे से कम नहीं कहा जा सकता। पौंग में एक लाख पक्षी हर साल आते हैं। यह औसत बनाए रखने की जरूरत है।
सवाल कई खड़े हैं। जलवायु परिवर्तन की गर्मी कहीं पौंग विहार से उन पक्षियों को दूर न कर दे जो ठंड की चाह में यहां आते हैं। शिकार भी पक्षी प्रेमियों के लिए चिंता का विषय है। बर्ड फ्लू की आशंका को दूर करने के लिए जांच के लिए जलंधर की फारेंसिक प्रयोगशाला में भेजा जाता है। लेकिन जहर से मरने की स्थिति में तो इन्हें हिमाचल की जुनगा कार्यशाला में ही भेजा जा सकता है। वहां का प्रबंधन जांच करने से इनकार कर देता है। वहां से यह जवाब मिलता है कि पुलिस की शिकयत के बाद तो जांच करने का उनके पास अधिकार है। उसके अलावा अगर वन्यप्राणी विभाग ने जांच करवानी हो तो उसे प्रदेश के गृह विभाग से मंजूरी लेनी होती है। मंजूरी की जटिल प्रक्रिया से हर कोई बचता है। इस कारण यह पता चलता ही नहीं पक्षी जहर खाकर कर मरें हैं या कोई वजह और रही होगी। इस कारण नियमों को सरल बनानें की आवश्यकता पर बल दिया जाता है। ऊना की स्वां नदी को नैचुरल पक्षी विहार माना जाता था लेकिन वहां भी चेनेलाइजेशन के कारण वे विहार उजड़ कर रह गया है। पक्षीप्रेमी प्रभात भट्टी की माने तो वर्ष 2004 में स्वां नदी में 18 सारस केरन देखे जाते थे जबकि अब महज वहां 6-7 ही नजर आते हैं। यही कारण है कि कुछ दुर्लभ पक्षियों की प्रजातियों की फोटो वे अपनी प्रदशर्नियों में प्रदर्शित कर रहे हैं ताकि कहीं तो इन्हें बचाने की मुहिम शुरू हो सके। उनका प्रयास छोटा ही सही एक शुरुआत मानी ही जा सकती है।
- अश्वनी वर्मा
Thursday, 10 June 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 comments:
kunki himachal ko uski wadiyon, pryavaran or anuthe pashu pakshiyon ke karan jana jata hai isliye apki chinta jayaz hai. IT yug main blogspot ke madham se himachal main paryavaran jagrukta abhiyan ki shuruat karna ek behtar pehal hai. iske liye aap badhai ke patar hain.
Sukhvinder
Divya Himachal
Paonta Sahib
gud job sir
MP Saxena ki hinbala jaisi kalakritiyon ke sarkar ki udasinta sharmnak hai.Samajik sangathno or kaiakaron ko iske liye awaz uthani chahiye.
ye ek kambher samasya ha.Sarkar nu isde uper thos kadam thane chahide
भाई आपके चिंतन के प्रति आभार। आप जैसे हिमाचल प्रेमी हमारे मित्र हों तो हमें अपने प्रदेश की चिंता करने की जरूरत ही नहीं है। आप अपने ब्लॉग में कुछ अपनी चुनिंदा कविताओं से भी रू-ब-रू करवाएं तो हमें अच्छा लगेगा।
Post a Comment