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Wednesday, 16 June 2010

शिमला में दम तोड़ती कला


जितना सुख कला के सृजन में है, ससे कहीं अधिक दुख अपनी कला को अपने सामने ही दम तोड़ते देखने में हैवक्त के थपेड़ों ने राष्ट्रीय अवार्ड से नवाजे गए मूर्तिकार एमसी सक्सेना की कृतियों की हालत यह कर दी है। हिमाचल की राजधानी शिमला में उनके मूर्ति म्यूराल और त्रि-दृश्यात्मक अर्ध मानवाकार कृतियां हैं। जिनमें से अधिकतर को मालरोड और रिज की शोभा बढ़ाने के लिए इस कलकार ने बरसों की मेहनत से तैयार किया है दुनिया में अपनी तरह की अनूठी तकनीक वाली हिमबाला को घायल करके गेयटी के एक कमरे में कपड़े में लपेटकर रख दिया गया है। ऐसी हालत में कलाकार के दिल पर क्या बीत रहा होगा, इसका अन्दाजा सहज ही लगाया जा सकता है। कोई क्या जाने इन मूर्तियों में कलकार की आत्मा बसती है। उनकी ऐसी हालत के लिए प्रशासन, भाषा-संस्कृति विभाग और नगर निगम बराबर के जिम्मेवार है। जब प्रशासनिक अमले की संवेदनाएं ही शून्य हो जाएं तो कला को दफन होने से कौन रोक सकता है। हिमबाला एक पहाड़ी महिला की मूर्ति है। जिसने घड़ा उठाया हुआ हैघड़े से अच्छी गुणवत्ता वाला पेयजल निकलता है। पानी निकलने की तकनीक इतनी अद्भुत है कि कहीं भी ऐसी मूर्ति के दर्शन नहीं होते। यह अलग बा है के मुंबई के गिरिजाघर गेट के पास ऐसी मूर्ति सक्सेना ने बनाई है। पानी उतनी ही देर टपकता है जितनी देर थका-हारा राही इसे भर पेट पीता है। उसके बाद कुदरती ही पानी घड़े से निकलना बंद हो जाता है। हिमबाला की आंखें खुली हैं लेकिन वह देख किसी को नहीं रही है। मूर्ति की इसी अदा से साधु संन्यासी भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके हैं। पूर्व मुख्य मंत्री और हिमाचल निर्माता डॉक्टर यशवंत परमार की प्रेरणा से ही सक्सेना ने इसे तैयार कर रिज पर पर्यटन निगम के रेस्तरां की बगल में लगवाया था। परमार प्रतिमा उस स्थान पर लगाई जानी थी तो हिमबाला का स्थान बदलकर उसे रेस्तरां की दूसरी बगल में स्थापित किया गया। यहीं से हिमबाला के दुर्दिन शुरू हो जाते हैं। पिछले तीन सालों से हिमबाला धक्के खा रही है। गेयटी थियेटर का जीर्णोद्धार होने लगा तो हिमबाला को उस स्थान से हटाने की कवायद शुरू हुई। यानी एक धरोहर कोहटाकर दूसरी रोहर को सजाने- संवारने की कसरत। वहां से अलग होने की प्रक्रिया में हिमबाला का घड़ा टूटा, नाक टूटी और पीठ पर चोटें आईं। कंधे और पैर भी इस प्रक्रिया में मुड़-तुड़ गए। फिर रेस्तरां के पास ही उसे उखाड़कर कपड़े में लपेट कर रख दिया गया ताकि आने जाने वाले लोग प्रशासन को इसे देखकर कोसे नहीं। वहां यह कई महीनों तक लावारिस पड़ी रही। कलकार ने इस मूर्ति को वापस मांगा तो दिया नहीं दिया गया। कलाकार का मन था कि इसकी थोड़ी- बहुत मरम्मत करके इसे फिर से कुछ ठीक हालत में लाया जा सके। पर कलाकार तो मनमसोस कर ही रह गया। गेयटी के एक कमरे में इसे बंद करके रख दिया या है। तीन साल से कलकार इस मूर्ति को अपने सामने दम तोड़ते हुए देख रहा है। शिमला जैसे खूब सूरत शहर में खूब सूरत मूर्ति की इस हालत को देखकर कलाकार तो महज खून के आंसू ही बहा सकता है। नगर निगम और प्रशासन से तो पुलिस वाले ही संवेदनशीन हैं। मूर्तिकार एमसी सक्सेना ने एक अन्य मूर्ति बनाई है। उसमें मालरोड की भीड़ में अपने मां- बाप से बिछड़ गए बच्चे को पुलिस वाले दुलार रहे हैं। पुलिस वाले इस मूर्ति की खूब अच्छी तरह देखरेख कर रहे हैं। यह मूर्ति रिपोर्टिंग कक्ष के सामने है। यह अलग बात है कि मूर्ति पर से एक बार नाम पट्टिका उखड़ गई थी।

स्केंडल प्वाइंट के पास लाला लाजपतराय की मूर्ति के पास एक फव्वारा है। वहां पर भी सक्सेना की बनाई एक मूर्ति स्थापित थी। यहां भी महिला पानी का घड़ा लिए खड़ी है। और उसमें से नृत्य करता
पानी निकलता था इस मूर्ति को भी वहां से हटाकर कलकार के दिल को तोड़ा गया है
हिमाचल के लोक जीवन को लेकर इस कलकार में गजब की समझ है। उनके म्यूरालों में इसकी झलक मिलती है।मालरोड पर ही गेयटी के पास ही उनका दीवार पर एक गद्दियों की जीवन शैली को लेकर एक बड़ा म्यूराल बना है।देश- विदेश के पर्यटकों के लिए यह काफी आकर्षण का केन्द्र रहा है। इसी तरह म्यूराल में पालमपुर में चाय के बगीचों में से महिला को विशेष विधि द्वारा चाय को तोड़ते हुए दिखया गया है। ऐसी विधि तो दार्जलिंग में मिलती है और ही देश के किसी हिस्से में। किल्टे के पास एक पहाड़ी महिला को
दिखाया गया है। पृष्ठ भूमि में तांबे का इस्तेमाल करके उगता हुआ सूरज दिखाया गया है जो एक आशा को जगाता नजर आता है। यह म्यूराल भी धीरे- धीरे ग्रहण का शिकार हो रहा है। नगर निगम ने इस पर बेढंगा रंग- रोगन करवा दिया है। कितना अच्छा होता अगर रंग रोगन करवाते समय कलकारों को भी विश्वास में ले लिया होता। बीच में से यह म्यूराल टूटने भीलगा है। इस पर पड़ी दरारें साफ देखी जा सकती हैं।
शिमला के कॉफी हाउस के निकट भी सक्सेना का बना एक म्यूराल है। इसमें पहाड़ी महिला को पश्मीना निकालते और सूत कातते दिखाया गया है। पास बैठा एक बच्चा महिला की नकल करके ऐसा करने की कोशिश करता है।पीछे एक डोरी बंधी है जिसमें ऊन का सामान आर पश्मीना लटकता दिखाया गया है। इसमें शीशे और फाइबर गलास का इस्तेमाल हुआ है। इसकी हालत भी अब खास अच्छी नहीं कही जा सकती। मालरोड पर ही कास्ट स्टोनसे एक अन्य म्यूराल में सक्सेना ने फिनिशिंग ब्रान्ज से की है। इस म्यूराल को कर्मवीर नारी शीर्षक दिया गया है।इसमें दिखाया गया है कि सेब को पेड़ से गोल- गोल घुमाकर कैसे तोड़ा जाता है। महिला के पास ही बगीचे में हंसता- खेलता बच्चा बैठता है। उस पर तितली और चिडिय़ा का बैठ जाना दृश्य को और मनोहर बना देता है। पहाड़ का जीवन प्रकृति से कैसा मेल खाता है, इसमे यह दिखाने की कोशिश हुई है। राज्य सचिवालय के नए भवन के गेटपर भी सक्सेना का एक म्यूराल है। उसमे रंग ठीक से भरे नहीं जा सकते थे, इस कारण रंगों को दर्शाने में शीशे का इस्तेमाल किया गया है। शीशे की भी एक ऊपर दूसरी परत है। यह इसलिए किया गया है कि अगर एक परत टूट जाए तो दूसरी परत निकलकर रंगों को काम संभाल लें। पर कलाकार की बरसों की मेहनत पर इस तरह पानी फिरेगा, यह सवाल उत्तर मांगता रहेगा।
- अश्वनी वर्मा

4 comments:

sukhvinder said...

MP Saxena ki hinbala jaisi kalakritiyon ke sarkar ki udasinta sharmnak hai.Samajik sangathno or kaiakaron ko iske liye awaz uthani chahiye.

Anonymous said...

shayad ab vibhag ki ankh khule murtiyin ko apna sthan aour darja mil sake

satvinder singh (www.awazindia.com)

Anonymous said...

Prof M C Saxena's work specially Himabala is not only Himachal's pride but a valuable treasure for India. The Himachal Government should be ashamed of not being able to preserve the heritage. Let's do something about this. Let's create some kind of protest movement. I'm sure not only Shimla but peopele from rest of India will join us.
Navigator (Delhi)

satveer singh said...

Shimla Is Very Famous City.Well Written.keep it up ;)

chandigarh